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पहाड़ के प्रवासी हों या स्थानीय बेरोजगार, मनरेगा (MNREGA) की मजदूरी से दूरी बनाने लगे हैं. गांवों में मनरेगा के तहत ना तो इन्हें 100 दिन का काम मिल पा रहा है और ना ही ठीक-ठाक मजदूरी. मजदूर 202 रूपए दिहाड़ी वाले इस सरकारी रोजगार को करने के बजाए उतने ही काम के दोगुने से भी ज्यादा दाम ले रहे हैं
दरअसल प्रवासियों के रोजगार के लिए सरकार ने मनरेगा योजना को बड़ा हथियार बनाया है. लेकिन इस योजना को लेकर पहाड़ में ही सवाल उठने लगे हैं. पहाड़ के प्रवासी हों या स्थानीय बेरोजगार, मनरेगा की मजदूरी से दूरी बनाने लगे हैं. गांवों में मनरेगा के तहत ना तो इन्हें 100 दिन का काम मिल पा रहा है और ना ही ठीक-ठाक मजदूरी. मजदूर 202 रूपए दिहाड़ी वाले इस सरकारी रोजगार को करने के बजाए उतने ही काम के दोगुने से भी ज्यादा दाम ले रहे हैं.
नैनीताल में मजदूरी कर पेट पाल रही माया कोटलिया कहती हैं कि काम मनरेगा में हो चाहे बाहर, बराबर ही करना पड़ता है. लेकिन मनरेगा में 202 रूपए ही मिलते हैं और वहां लगातार काम भी नहीं मिलता है जिसके चलते वो बाहर काम खोजती हैं.
भीमताल ब्लॉक प्रमुख और बीजेपी के नेता डाक्टर हरीश बिष्ट कहते हैं कि पलायन रोकने के लिए मनरेगा वाकई एक अच्छा माध्यम है. लेकिन इसमें जो व्यवहारिक दिक्कतें हैं उनको दूर करना होगा. वो कहते हैं कि सरकार को 202 रूपए से बढ़ाकर मजदूरी 300 के ज्यादा करना होगा. साथ ही 100 दिन के बजाए काम के दिनों को भी बढ़ाना होगा तभी लोग इसमें काम करने की इच्छा जाहिर करेंगे.कांग्रेस ने मनरेगा के बहाने सरकार पर सवाल उठाए
दरअसल कोरोना महामारी की वजह से पिछले कुछ महीनों में लाखों की संख्या में प्रवासी पहाड़ लौटे हैं. सरकार ने इन सभी को मनरेगा के तहत रास्ता, चाल-खाल दीवार, सीसी मार्ग, नहर समेत अन्य काम देने का दावा किया है. लेकिन दिक्कत यह है कि घर में चार जॉब कार्ड होने पर 25 ही दिन काम मिल रहा है. तो दिहाड़ी भी काफी कम होने से लोगों दूसरे स्थानों पर काम के लिए जा रहे हैं. अब कांग्रेस मनरेगा के बहाने सरकार के रोजगार प्लान पर तंज कस रही है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि वो मनरेगा का विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन सरकार से मानकों में सुधार की मांग कर रहे हैं. ताकि रोजगार को 100 दिन से बढ़ाकर 300 दिन किया जा सके. साथ ही मजदूरी को भी बढ़ाया जा सके. उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ सपने दिखा रही है और मनरेगा के साथ मुख्यमंत्री स्वरोजगार के सपने दिखा रही है जो धरातल पर कहीं दिखता नहीं है.
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