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मंदिर निर्माण में राजनीति के दखल को इसलिए कम से कम रखने के बारे में सोचा गया था ताकि मंदिर प्रक्रिया में गठन धार्मिक भावनाओं के अनुरूप हो. विहिप ने सोमनाथ मंदिर के ट्रस्ट की तर्ज़ पर (मोदी और शाह जिसमें बोर्ड सदस्य हैं) ही राम मंदिर के ट्रस्ट बनाए जाने पर ज़ोर दिया था. अब जानने लायक बात ये है कि सोमनाथ ट्रस्ट में क्या खास है, जो राम मंदिर ट्रस्ट के लिए मॉडल के तौर पर देखा गया.
क्या है सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की कहानी?
अयोध्या में राम जन्मभूमि की तरह सोमनाथ मंदिर भी एक तहस नहस की गई जगह रही, जिसे 1026 ईस्वी में मेहमूद गज़नवी ने लूटा था. बहरहाल, इस मंदिर के कायाकल्प की बड़ी शुरूआत इस लूट के करीब 900 साल बाद हुई, जब आज़ादी के बाद 1947 में ही जूनागढ़ की एक सभा में वल्लभभाई पटेल ने इसके पुनर्निर्माण को लेकर घोषणा की.ये भी पढ़े :- समय समय पर सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार की कहानी
राम जन्मभूमि रथयात्रा से हिंदुत्व की राजनीति में कद्दावर नेता के तौर पर पहचाने गए लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण को लेकर लिखा था कि पटेल इस मामले में महात्मा गांधी के आशीर्वाद के साथ ही नेहरू का समर्थन और केएम मुंशी व एनवी गाडगिल का सहयोग हासिल कर चुके थे. तब, गांधी ने अंतिम समय में कहा था कि सरकार के बजाय लोग मंदिर का फंड जुटाएं तो ठीक होगा.
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इसके बाद एक ट्रस्ट बना, जिसके प्रमुख लेखक और शिक्षाविद केएम मुंशी थे और जिसमें कई नेता शामिल थे.
कैसे आगे बढ़ी फंडिंग की कहानी?
मुंशी ने अपनी किताब में लिखा है कि सोमनाथ पुनरुद्धार की घोषणा के बाद कुछ लोगों ने दान किया था. लेकिन गांधी जी के जन धन जुटाने के सुझाव के बाद ‘पटेल ने नवागनर के जाम साहब का दान किया एक लाख रुपये का चेक और जूनागढ़ प्रशासन प्रतिनिधि सामलदास गांधी के 50 हज़ार रुपये लौटाए और उन्हें सोमनाथ फंड में दान करने के लिए कहा.
नेहरू ने किया था प्रसाद की शिरकत का विरोध
साल 1949 तक इस फंड में 25 लाख रुपये इकट्ठे हो चुके थे, तो 15 मार्च 1950 को ट्रस्ट आखिरकार शुरू हुआ और जाम साहब ने शिलान्यास किया. 1951 तक मंदिर का बेस और गर्भगृह तैयार हो चुका था. इस बारे में द प्रिंट की रिपोर्ट की मानें तो लिंग स्थापना के लिए जब पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से आग्रह किया गया था, तब पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस पर ऐतराज़ जताया था.
पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल.
नेहरू ने इसे ‘हिंदू पुनर्जागरण’ करार देते हुए कहा था कि देश के शीर्ष नेतृत्व को इससे नहीं जुड़ना चाहिए. हालांकि राष्ट्रपति प्रसाद ने नेहरू के इस ऐतराज़ को अहमियत न देते हुए मंदिर के समारोह में शिरकत की थी.
ट्रस्ट में कौन लोग हैं खास?
गुजरात पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950 के तहत बने श्री सोमनाथ धार्मिक चैरिटेबल ट्रस्ट में eight सदस्य होते हैं. गुजरात के पूर्व सीएम केशुभाई पटेल इसके अध्यक्ष हैं जबकि पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व भाजपा दिग्गज एलके आडवाणी और गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव प्रवीण लाहेरी इस ट्रस्ट के सदस्य हैं. वहीं, अंबुजा न्योतिया समूह के हर्षवर्धन न्योतिया और वेरावल से संस्कृत के रिटायर्ड प्रोफेसर जेडी परमार भी ट्रस्ट के गैर राजनीतिक सदस्य हैं.
क्या है इस ट्रस्ट का काम?
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के जीएम विजय सिंह चावड़ा के हवाले से रिपोर्ट बताती है कि दान, भेंट और अतिथि ग्रह के रूप में 400 कमरों के किराये से ट्रस्ट को साल 2018 में 42 करोड़ की आमदनी हुई थी. इस रकम का इस्तेमाल ट्रस्ट द्वारा गिर सोमनाथ ज़िले में आंगनवाड़ियों में पोषणयुक्त आहार बांटने में किया जाता है. पिछले तीन साल से किए जा रहे इस वितरण के साथ ही दो सालों से रोज़गार के लिए बेरोज़गारों को वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाती है.
दूसरी तरफ, गुजरात सरकार ने भी पिछले दो ढाई सालों में 31 करोड़ रुपये से ज़्यादा के खर्च से सोमनाथ मंदिर के आसपास कई तरह की सुविधाएं विकसित की हैं. कार्तिक पूनम मेला भी हर साल ट्रस्ट आयोजित करता है, जिसमें देश भर से आठ से नौ लाख लोग शिरकत करते हैं.
Covid-19 के चलते राम मंदिर निर्माण में रुकावटें आई हैं.
राम मंदिर ट्रस्ट के साथ क्या हैं समानताएं?
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की तर्ज़ पर अयोध्या के राम मंदिर ट्रस्ट बनाए जाने की चर्चाओं के बीच इस साल फरवरी में खुद पीएम मोदी ने इस ट्रस्ट की घोषण की थी. अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र नाम से बने इस ट्रस्ट के प्रमुख महंत नृत्यगोपाल दास हैं जबकि पूर्व सॉलिसिटर जनरल के पाराशरण इसके सदस्य हैं. इस ट्रस्ट के 15 में से 12 सदस्यों को केंद्र सरकार नॉमिनेट करती है.
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दूसरी तरफ, सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट में केंद्र और राज्य सरकारें चार चार सदस्यों को नॉमिनेट करती हैं, जबकि ट्रस्टी मंडल संभावित सदस्यों की एक लिस्ट तैयार करता है और सामान्य रूप से उसी में से सदस्य चुने जाते हैं. इसके अलावा, दानराशि जमा करने के लिए बीते मार्च में ही राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र का करंट अकाउंट खोला गया, जिसमें प्रमुख रूप से अब तक महावीर मंदिर की तरफ से दान में मिला दो करोड़ रुपये का चेक जमा किया गया.
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