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राजा मानसिंह की मौत के बाद राजस्थान ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय में भी भारी आक्रोश पैदा हो गया था. मानसिंह एक कुशल राजनेता के साथ-साथ जाटों के अग्रणी नेता थे. मौत के 35 साल बाद मिले न्याय की लंबी लड़ाई के साथ ही जानिए कौन थे राजा मानसिंह और क्या थी वह घटना…
राजा मानसिंह ने की इंजीनियरिंग की पढ़ाई और फिर लगातार सात बार रहे निर्दलीय विधायक
राजा मानसिंह का जन्म 5 दिसम्बर 1921 को भरतपुर रियासत में हुआ. इनके पिता महाराजा किशनसिंह के तीन बेटे बिजेंद्र सिंह, मानसिंह और बच्चू सिंह थे. राजा मानसिंह काफी प्रखर बुद्धि के छात्र थे और 1928 में पढ़ाई करने इंग्लैंड चले गए. जहां से 1942 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर वापस वतन लौटे. भरतपुर लौटकर मानसिंह 1946-47 में भरतपुर रियासत के मंत्री बने. इसी दौरान 1947 में रियासत का झंडा उतारने का विरोध करने के साथ ही उन्होंने ध्वज फहराने वालों को जेल से मुक्त कराया.इसी के बाद से एक परिपक्व राजनेता का जन्म हुआ और सन् 1952 में पहली बार विधानसभा में निर्दलीय विधायक चुने गए. इसके बाद राजा मानसिंह का कद बढ़ता गया और उन्होंने पीछे मुडकर नहीं देखा. 1952-1984 वे तक लगातार सातवीं विधानसभा तक निर्दलीय विधायक रहे.
1985 में घटी यह घटना..
राजा मानसिंह के एनकाउंटर की इस घटना की शुरुआत 20 फरवरी 1985 को हुई, जब चुनाव प्रचार तेजी पर था. 20 फरवरी को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की चुनावी सभा होनी थी. इस दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा राजा मानसिंह की रियासत के झंडे उखाड़ देने की बात सामने आई. जिसके विरोध में राजा मान सिंह अपनी जोंगा जीप लेकर सीधे मुख्यमंत्री के सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए उस जगह पर पहुंचे, जहां मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से उतरे थे. कहा गया कि राजा मान सिंह ने हेलीकॉप्टर को जीप की टक्कर से क्षतिग्रस्त कर दिया. हालांकि मुख्यमंत्री वहां नहीं थे, इसके बाद मानसिंह ने मुख्यमंत्री के भाषण के लिए तैयार किए गए चुनावी मंच को ध्वस्त कर दिया. इस दौरान कांग्रेस कार्यकर्ता भी बौखला उठे. हालांकि मुख्यमंत्री ने टूटे मंच से ही चुनावी भाषण दिया.
इस घटना का गहरा असर हुआ और पुलिस ने राजा मान सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. बताया जाता है कि अगले दिन 21 फरवरी को जैसे ही राजा मान सिंह लाल कुंडा चुनाव कार्यालय से प्रचार के लिए अनाज मंडी, डीग थाने के सामने से गुजर रहे थे तो मौजूद सीओ कान सिंह भाटी और अन्य पुलिसकर्मियों ने फायरिंग कर दी. ताबड़तोड़ चली गोलियों के बाद जोगा जीप में राजा मान सिंह, सुम्मेर सिंह और हरी सिंह के शव पड़े मिले. वहीं डीग थाना के एसएचओ वीरेंद्र सिंह ने राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही के खिलाफ भी 21 फरवरी को ही धारा 307 की रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि उसी रात विजय सिरोही को जमानत मिल गई. इसके बाद दो दिन बाद विजय सिरोही ने डीएसपी कान सिंह भाटी सहित 17 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.
35 साल खिंचा मामला, राजकुमारी कौर की तरफ से बदल गए चार निजी वकील
राजकुमारी दीपेंद्र उर्फ दीपा कौर और दामाद विजय सिरोही की ओर से सबसे ज्यादा लंबे समय तक केस लड़ने वाले मथुरा के एडवोकेट नरेंद्र सिंह ने बताया कि 1985 में हुई इस घटना के बाद न्याय के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. दामाद सिरोही की ओर से दायर किए गए मुकदमे के बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. बेटी और दामाद को इसके लिए सरकारी वकील मुहैया कराया गया. हालांकि प्राइवेट वकील के रूप में सुरेश चंद्र भार्गव उर्फ बड़े सुरेश ने यह मुकदमा लड़ा. उनकी मौत के बाद यह केस नरेंद्र सिंह के पास आया. जिन्होंने करीब 15 साल तक इस केस को लड़ा. इस दौरान राजपरिवार की ओर से भी कई बार कोर्ट में न आ पाने के कारण नरेंद्र ने इसकी सुनवाई में जाना बंद कर दिया. हालांकि इसके बाद आगरा के एक वकील इस केस में प्राइवेट वकील बने. उन्होंने भी इस मामले को छोड़ दिया. इसके बाद नारायण सिंह विप्लवी ने इस मामले को बतौर प्राइवेट वकील लड़ना शुरू किया. हालांकि 35 साल बाद आए इस फैसले से सभी काफी खुश हैं.
एडवोकेट एनएस विप्लवी बोले, सभी दोषियों को मिलेगी आजीवन कारावास की सजा
न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में राजा मानसिंह के दामाद विजय सिरोही और बेटी दीपा कौर के वकील नारायण विप्लवी ने बताया कि पिछले 35 साल से चले आ रहे इस मामले में न्याय की उम्मीद के साथ इस केस को लड़ना शुरू किया और आज कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी ठहरा दिया है. उन्होंने कहा कि सभी को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी पाया गया है. ऐसे में सभी को आजीवन कारावास से कम की सजा नहीं होगी. [/readtext]
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