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करोड़ों पौधे रोपे हैं अब तक
वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार 2017 से 2019 के बीच तीन साल में पूरे उत्तराखंड में साढ़े सात करोड़ पेड़ लगाए गए. इस साल भी एक करोड़ 80 लाख पेड़ लगाने का टारगेट रखा गया है. सवाल उठता है कि क्या वास्तव में इतने पेड़ लगाए गए? इनमें से आधे से भी कम यदि पेड़ जीवित रहते तो तीन करोड़ पेड़ों से उत्तराखंड में हर खाली जगह भर चुकी होती. अब आपको बताते हैं क्या है ज़मीनी हकीकत…
न्यूज़ 18 के पास मौजूद एक्सक्लूसिव रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग ने साल 2015-16 में किए गए कुल प्लांटेशन के तीस फीसदी हिस्से में और साल 18-19 में नमामि गंगे के तहत लगाए गए लाखों पौधों के 25 फ़ीसदी हिस्से का जब ग्राउंड वेरीफिकेशन कराया तो जो हकीकत सामने आई वह चौंकाने वाली थी.यह है सर्वाइवल रेट
इस रिपोर्ट के अनुसार विभाग ने कुल 3659 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किए गए प्लांटेशन का आकलन कराया. मात्र 98 क्षेत्र ही ऐसे निकले जहां विभागीय मानकों के अनुरूप 40 फीसदी पेड़ जिंदा थे. 40 प्लांटेशन एरिया ऐसे थे, जहां पेडों का सक्सेस रेट 11 फीसदी था. 58 प्लांटेशन एरिया ऐसे थे, जहां सक्सेस रेट 13 फीसदी रही. इसके अलावा 53 क्षेत्रों में 12 फीसदी और 92 क्षेत्रों में 24 फीसदी पेड़ ही जिंदा रहे.
यही हाल नमामि गंगे के तहत में किए गए प्लांटेशन का रहा. नमामि गंगे के तहत मात्र 56 हेक्टेयर क्षेत्र में ही मानकों के अनुरूप पेड़ जिंदा रहे. 96 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तो पेड़ों की सफलता डी श्रेणी की थी यानी कि यहां मानकों से 30 फीसदी से भी कम पेड़ जिंदा रहे.
किसी की ज़िम्मेदारी नहीं!
ताज्जुब की बात ये है कि वन विभाग ने इसकी समीक्षा तो की लेकिन इसके लिए किसी की भी ज़िम्मेदारी तय नहीं की गई. इसके लिए प्राकृतिक कारणों को जिम्मेदार ठहरा दिया गया. यह निष्कर्ष निकाला गया कि अत्यधिक जैविक दबाव, कठिन भौगोलिक परिस्थितियां, बारिश का अभाव और सिंचाई की कोई व्यवस्था न होने के कारण ऐसा हुआ.
समीक्षा बैठक में जो निकलकर आया उसमें एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी था कि स्थान विशेष को ध्यान में रखकर लगाए जाने वाले पेड़ों की प्रजातियों का चयन नहीं किया जाता.
सवाल उठता है कि क्या वन विभाग सालों तक इसी तरह बिना प्रजातियों के चयन के यहां वहां कुछ भी प्लांटेशन करता रहा है?
देहरादून भी विषम?
ताज्जुब यह भी है कि दूर-दराज के क्षेत्रों में अगर विषम भौगोलिक परिस्थतियां मान भी ली जाएं, तो राजधानी देहरादून का क्या. इस रैंडम सैंपलिंग में जहां-जहां के प्लांटेशन एरिया लिए गए, उनमें से दो एरिया देहरादून वन प्रभाग के भी थे. देहरादून के दोनों क्षेत्रों में सफलता डी श्रेणी की रही यानी कि साल 2015-16 में जो पेड़ लगाए गए उनका अब कहीं अता-पता नहीं है. नियमानुसार प्लांटेशन के इस निराशाजनक परिणाम पर संबंधित रेंज अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन वन विभाग ने आज तक किसी अफसर का जवाब तलब नहीं किया.
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