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इसके पहले दिसंबर 1949 में तब अयोध्या (Ayodhya) में रामलला के प्रकटीकरण के समय उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन पीठाधीश्वर दिग्विजय नाथ थे.
उनकी उपस्थिति बड़े महराज के उस सपने जैसी होगी जो राम के बारे में उन्होंने देखा था.
उनके राम अहिल्या के उद्धारक थे, केवट को गले लगाने वाले थे, सबरी के जूठी बेर खाने वाले थे, गिद्धराज जटायू को अंतिम समय मे गोद लेने वाले थे. गिरिजनों और वनवासियों की मदद से अत्याचारी रावण का संहार करने वाले थे. उनके राम देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले थे. आज भूमिपजन के दिन ठीक वैसा ही देखने को मिला. लगा यह सिर्फ राम का ही नहीं राष्ट्र का मंदिर होगा.
ये भी पढ़ें- Ayodhya Ram Mandir Nirman: सदी के सबसे बड़े भूमि पूजन के लिए राम नगरी हुई तैयारमालूम हो कि इसके पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम मंदिर न बनने तक टेंट से हटाकर चांदी के सिंहासन पर एक अस्थाई ढांचे में ले जाने का काम सीएम योगी ने ही किया था. इसके पहले दिसंबर 1949 में तब अयोध्या में रामलला के प्रकटीकरण के समय उनके दादा गुरु ब्रह्मलीन पीठाधीश्वर दिग्विजय नाथ थे. यही नहीं 1986 में जब मंदिर का ताला खुला तो ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ अयोध्या में मौजूद थे. इतिहास में ऐसी तीन पीढिय़ा मिलना विरल हैं, जिन्होंने एक दूसरे के सपनों को न केवल अपना बनाया. बल्कि इसके लिए शिद्दत से सँघर्ष भी किया, नतीजा सबके सामने है. वह भी इतिहास के रूप में.
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