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नंदनी कहती हैं कि उनके पापा रिक्शा चलाते थे. लेकिन लॉकडाउन में रिक्शा लेकर निकलने पर कई बार पापा की पिटाई कर दी गई. जिसकी वजह से उसने मजबूरी में रिक्शा खींचना शुरू कर दिया, ताकि घर के लोगों का पेट भर सके.
क्या कहती है नंदिनी
नंदनी कहती हैं कि उनके पापा रिक्शा चलाते थे. लेकिन लॉकडाउन में रिक्शा लेकर निकलने पर कई बार पापा की पिटाई कर दी गई. जिसकी वजह से उन्होंने रिक्शा चलाना बंद कर दिया और मजदूरी खोजने निकल पड़े. ऐसे में दरवाजे पर रिक्शा खड़ा मिला तो वह यह जानकर रिक्शा लेकर निकल गई कि वह लड़की है तो उसे कोई परेशान नहीं करेगा. वहीं सासाराम के सदर अस्पताल जाने वाले रोड पर नंदनी को दो-चार यात्री भी मिल गए. जिससे वह कुछ रुपए भी इकट्ठा कर पाई. वह कहती है कि लॉकडाउन के कारण घरों में झाड़ू-पोछा का काम बंद है. कोरोना के कारण लोग अपने घरों में उन्हें नहीं बुला रहे हैं. नंदनी कहती हैं कि खेल-खेल में वह रिक्शा चलाना सीख गई थी. उसे क्या पता था कि उसका इतना फायदा होगा? आज वह अपने परिवार के लिए दो-चार रुपए इकट्ठा कर लेती है, जिससे घर का खर्चा भी निकल जाता है. नंदनी कहती है कि पहले आसपास के लोग कुछ मदद कर देते थे जिससे परिवार चल रहा था लेकिन दूसरों के भरोसे कब तक जिंदगी जिया जाए, इसलिए पापा के बोझ को हल्का करने के लिए वह खुद रिक्शा लेकर निकल जाती हैं. जो भी कमाई होती है वह अतिरिक्त हो जाती है.
मिसाल है नंदिनीनंदनी वैसे लोगों के लिए मिसाल हैं, जो बेरोजगारी का रोना रोते हैं. छोटे-छोटे काम करने में उन्हें शर्म आती है. लेकिन जिस तरह से एक लड़की होकर मजबूरी के दिनों में अपने पिता के काम को अपना कर सड़कों पर उतर आई हैं, उसकी हिम्मत को सभी सलाम करते हैं. नंदनी कहती है कि पहले तो मोहल्ले के लोग उन्हें रिक्शा चलाता देख मजाक उड़ाया करते थे. लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं रहा, सब कुछ सामान्य हो गया है.
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